दर्वेश का महत्व
दरवेश कि शान यह है कि उसका बातिन दुनियावी अखराज से महफूज़ रहता है , उसका नफस आफत व शर से बचा हुआ होता है ||दरवेश वह होता है जो अल्लाह तआला के सिवा किसी और चीज को तलब नहीं करता है दरवेश बजुज ख़ुदा के किसी चीज से राहत नहीं पाता, क्योंकि उसका कोई और मकसदे हयात नहीं होता।
दरवेश ने अपनी गुफ़्तार और अपने किरदार से एक मयारी ज़िंदगी का नमूना पेश किया। कम खाना, कम बोलना, कम सोना और लोगों से कम मेल जोल रखना उनका तरीक़ा-ए-क़ार हैं।
कामिल दरवेश इश्क़े इलाही में ऐसे सरमस्त व शरसार रहते हैं के इनको अपनी हस्ती का पता नहीं रहता हैं ।
तसलीम व रज़ा, तवक्कल व कनाअत, स उम्मीद व बीम, मोहब्बत व इखवत, ख़ुलूस व ख़िदमत, फुक्र व फ़ाका, ईसार व इस्तकामात इनका शुआर होता हैं।
कामिल दरवेश अपने दर्द और अपने दरमियान, अपनी दुआ और अपनी दवा ,अपने सोज़ और अपने साज,अपनी ज़िन्दगी और अपनी मौत ,अपनी फ़तह और अपनी शिकस्त को ख़ुदा की तरफ़ मंसूब करते हैं। कामिल दरवेश इश्क़े इलाही के असीर हैं , दीन के नसीर हैं , वह रोशन ज़मीर हैं बेकसों के दस्तगीर हैं , कामिल पीर हैं व दुर्रे बेश-बहा व बेनज़ीर हैं।
तालिबों की तलब जब उनको इन हज़रत के मैख़ाने में लाती वह इनको ताईब करके अलाईशे दुनियां से पाक व साफ़ कर देते हैं। मोहब्बत और ख़ुलूस के दिलनशीन हथियारों से गैरों को अपना करते हैं, कामिल दरवेश अमीरे शरीअत हैं। ज़ूया-ए-हकीक़त हैं,साहिबे निस्बत, साहिबे इज़ाज़त हैं,शमा शबिस्ताने हिदायत हैं, चिराग़े दूदमाने विलायत हैं, यह इल्मे बातिन और इल्मे ज़ाहिर में कामिल हैं ।
कामिल दरवेश मख्नलूक से बेनियाज़ हैं, कौमी और नस्ली इम्तियाजात से पाक व साफ़ हैं। मज़हबी तअस्सुबात से आज़ाद हैं,वह एहले सफ़ा हैं, वली-ए-ख़ुदा हैं,आलिमे बाअमल हैं, साहबे जूद व करम हैं।
कामिल दरवेश शम्स व क़मर में , जान व जिगर में, लाल व गौहर में , शाम व सहर में ,ख बर्ग व शजर में , आतिशे नमरुद में, गुलज़ारे इब्राहिम में ख़ुदा का जल्वाकार फ़रमा देखते हैं।
कामिल दरवेश की ज़िन्दगी नुकाते तरीकत का दफ़िना है, हकीक़त व मआरफ़त का आईना है, मआरफ़ते इलाहिया का सरचश्मा है। गर्ज़ इन कामिल दरवेश ने अपनी रूहानी ताक़त, अपने किरदार और अपनी गुफ्तार अपने ईसार और अपने ख़ुलूस और रवादारी से एक नये समाज की तश्कील की । यह वह लोग हैं के अल्लाह के साथ जो एहद कर लेते हैं उनको पूरा करते हैं और अपने इकरार को नहीं तोड़ते।
ख्वाज़ा ए ख्वाजगान हज़रत ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती , एक कामिल दरवेश ने नूर व मआरफ़त और हक़ व सदाकत की जो शमा अजमेर में रौशन की , उस शमा को हज़रत कुतुबुदीन बख्तियार काकी रह. ने न तो तुन्द व तेज हवाओं से बुझने दिया और न उसकी रोशनी को कम होने दिया , आपके बाद आपके जानशीन हज़रत बाबा फ़रीदुदीन गंजशकर रह. और उनके जानशीन हज़रत अलाउदीन साबिर पिया व हज़रत निज़ामुदीन मेह्बूबे इलाही देहलवी से लेकर इन जानशीनाम से होते हुए कामिल साजिद दरवेश हज़रत बाबा साहब ( सोनगिरी ) ने इस शमा की रोशनी को बरकरार रखा । यह शमा आज भी पूरी तबानी के साथ रोशन है। इस शमा के परवाने हर शहर और हर गाव में मिलेंगे।
कामिल दरवेश हज़रत बाबा साहब को हिंदुस्तान में जो मकबूलियत हासिल हुई इस पर मालवा अंचल के अफ़राद जितना भी फक्र करें, कम हैं । इन्होनें अपनी गुफ्तार और किरदार से एक ऐसा इन्कलाब पैदा किया जिसका असर हिन्दुस्तानी तहजीब व तमद्दुन, अफ़कार व ख्यालात, इल्म व अदब, गर्ज़ जिन्दगी के हर शोबे पर ऐसा गहरा पड़ा के इसके आसार और खद व खाल मालवा अंचल में नुमाया हैं।