आर्टिकल्स
"जहाँ तकाज़ा है इंसानियत का
जहाँ बहती है रूहानियत की गंगा"
हिन्दुस्तां की सरजमीं सूफी संतो की एक ऐसी सरज़मीं है, जहाँ कल भी बुजुर्गों के फैज़ और बरकत के चश्मे जारी और सारी थे और आज भी है, कयामत तक भी रहेंगे | यह वो सरज़मीं है जो सूफियो संतो की तालीमात से इंसानी ज़हनो को रोशन करती आई है और आज भी कर रही है l यह वो सरजमीं जिसे अमीर खुसरो ने तमाम दुनिया से बेहतर और अफज़ल बताया है l यह वो सरजमीं है जिसके आसमाने मारफत पर रूहानियत के सितारे अपनी पूरी बात व ताब के साथ जगमगाते हुए आते है l यह वो सरजमीं है, जहाँ पर शरियत, तरीकत, तसव्वुफ़ और मार्फियत के हज़ारों मयखाने आबाद है l उन्हीं मयखानों में से एक मयखाना लालकुआ सोनगिरी की खानकाह मुक़द्दस है, जहाँ पहुचते ही इंसानी दिलो में उम्मीद और यकीन की रौशनी रोशन हो जाती है l यह वो खानकाह है, जहाँ फैज़ व बरकत के चश्मे हमेशा - हमेशा जारी व सारी नज़र आते है l बाबा साहब का कल्ब एक सुफिया है, जिसमे खुलुसे मोहब्बत है, शराफत-ए-इंसानियत है, तहारतो निफासत है, सब्रो किनाहत है | हमदर्दी और खिदमते खल्क का जज्बा है, आपकी जबान में तासीर है, आपके गुफ्तगू में मिठास है l आपकी नज़रों में वो असर है, जो मुकद्दर के बंद दरिचो को भी खोल दिया करती है l बाबा साहब को एक मुनफ़रिद मुकस्सम हासिल है l आप खिदमते खल्क को अपना नस्ब ओ एन समझते है l शरीयत तरीकत और मारफत की दौलत ऐसी दौलत है जो खुदाबन्द कुद्दुस के मुकर्रब बन्दों का ही नसीब हुआ करती है l इश्के हकीकी की बुलंदियों से वो ही सरफ़राज़ होता है l जो तर्क-ए-दुनिया इख़्तियार करने के साथ साथ आराम और राहत से भी बेनियाजी इख़्तियार कर ले l खुदा सनासी की कैफीयत एक ऐसी कैफियत है जो खुदा के इल्म के जाने बगैर हासिल नहीं हो सकती है l
खानकाह-ऐ-आलिया -
काता ए कहत तो वबा है खानकाह ए आलिया l दाफा ए रंजो बलाह है खानकाह ए आलिया l
आफ़ताब ए पुर लिया खानकाह ए आलिया l रोशनी का सिलसिला है खानकाह ए आलिया ll
आपकी चश्मे करम सरचश्मा ए इरफ़ान है l चश्मा ए आबे बका है खानकाह ए आलिया ll
एक इशारा आपका वजह ए हयाते वाजेदा l चश्मा ए फैज़ को अता खानकाह ए आलिया ll
काबिले इज्बो सर्फ़ है आपकी जाते अज़ीम। लायक़े हद्दे मरहबा है खानकाह ए आलिया ll
देख कर नज़ारे इसके यही होता गुमां l मज़हरे शाने खुदा है खानकाह ए आलिया ll
है रवां चश्में सख़ावत के यहां हर सू असर l बेकस रुकसे बहरे सखा है खानकाह ए आलिया ll
महू-नीमच रोड पर मंदसौर जाते समय सोनगिरी लाल कुआं (गांव -फतेहगढ़) पर एक बोर्ड लगा हुआ दिखता है जिस पर ' हज़रत बाबा साहब ' लिखा हुआ है l दिल में एक लगन पैदा होती है कि इस अजीमुलमर्तबत हस्ती के दीदार किए जायें l इनका दरबार सर्वधर्म सम्भाव का एक उम्दा नमूना है, जहाँ हर धर्म, हर जाति के लोग फैज़ (लाभ ) हासिल करने पहुंचते है l हज़रत बाबा साहब की एक मुस्कुराहट और खास दुआ ' खुश रहो ' सुनकर, खुश होकर खुशी भरे आंसू बाबा साहब की खिदमत में पेश करके रवाना हो जाते है l
अगर किसी को भूत-प्रेत का असर होता है, तो चोखट पर पहुंचते ही भूत-प्रेत से भी उस दुखी को निजात मिल जाती है l
अज़ीम आलामर्तबत दरवेश रूहानी ज़मीर वाले औलिया हज़रत बाबा साहब खुदा के मकबूल तरीन बन्दों और पाकीज़ा हस्तियों में से एक है l लोगों की तरबियत करना और उन्हें आम लोगो से रूह शनाश करना एक मुश्किल तरीन काम है l लेकिन अगर कोई शख्स खुद ब खुद ज़हूर पज़ीर हो तो कहने के लिए कुछ बाकी नहीं रह जाता हैं l जो अज़हर मिनस्शम्स हो उसकी ज़ियारत और दीदार ही से इन्सान की जिंदगी कामयाब और बामुराद हो जाती है l सोनगिरी (फतेह्गढ़) के इस मखसूस मुकाम पर जहां बाबा साहब गौशानशीन हैं, रोजाना सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि गुजरात, राजस्थान और उत्तरप्रदेश तक के ज़ायरीन ज़ियारत के लिए आते रहते हैं !
सरज़मी-ए-हिंदुस्तान पर तो औलिया ऐ इकराम की खास नज़र ऐ करम रही है और इसी कड़ी में बाबा साहब ने मंदसौर जिले को अपनी निगाहें करम का मरकज बनाया हैं |
बेशक ऐसे मुकामात हिन्दुस्तान में बहुत नायब हैं ! ऐसी गिनी-चुनी जगहों सोनगिरी का नाम फक्र से लिया जाता है l ज़मीन और आसमान की ओर इन्सान की तकलीफ खुदा ने की l उस वक्त इस कायनात में मौज़ूद इल्म और इस इल्म में जो कुछ है वो सब कुछ इन्सान को दिया l
जो लोग अताअत एवं इबादत , ज़ियारत , रियाज़त, तर्क , मेहनत और अर्ज़ मुजाहेदा करते हैं , राहे खुदा में खुद को फना कर देते है वही आखिरकार इसका फल भी पाते हैं l अजीबोगरीब औसाफ का ख्न्याल उनकी जात में पैदा हो जाता है और वह साहब कशफो करामत के दरजात तक पहुच जाते है l इसलिए इंसानियत की उन हस्तियों को उनके दरजात के मुताबित उन्हें क़ुतुब , कलंदर , अबदाल, सूफी वगेरह के अलकाब से पुकारा जाता है l मगर ऐसी बाबरकत और बुजुर्ग हस्तियों से सारे मजहबों मिल्लत को उंच-नीच और जात-पात के इम्तियाज़ के बगैर फैज़ मिलता हैं और मदद पहुँचती रहती है |
हज़रत बाबा साहब की शख्सियत ख़ामोश आबीदो जाहिद और वलियेकामिल की हैसियत से आफ़ताब की तरह रोशन हैं, साथ ही वो पुरआशोब और अमन-दुश्मनी के दौर में कौमी एकता जीती जागती मिसाल है ! आपकी खानकाह सिर्फ एहले इस्लाम के लिए नहीं हैं, बल्कि तमाम मजाहिब के मानने वालों की अकीदत का मरकज हैं ! हुजूम के हुजूम जिनमे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, अमीर, गरीब, मंत्री,नेता, मजदूर, मालिक, वकील, बाबु, अफसर, मुल्ला, पंडित, सभी शामिल हैं ! भीड़ की शक्ल में लोग इस खानकाह की तरफ खींचे चले आते हैं ! इस मंज़र को देखते हुए हज़रत बाबा साहब के एजाज में एक कुलहिंद मुशायरे में शायर हसन इक़बाल ने हज़रत बाबा साहब को शेर नज्र किया था !
ऐसा एक हुजरा नशीं भी हैं मेरी नज़रों में,
जिसकी दहलीज़ पर सुल्तान भी आ जाते हैं l
आपके एजाज़ में मशहूर शायर मैकश अजमेरी ने अशआर का नजराना-ए-अकीदत पेश किया हैं,
जिसमें के रहा करता हैं एक मस्त कलंदर,
उस शहर में मुंह अपना छुपती हैं बलाएं l
धर्मनिरपेक्ष मानव मात्र की सेवा और दुःख दर्दियों की निःस्वार्थ सेवा का तीर्थस्थान इस समय महू-नीमच रोड पर ग्राम सोनगिरी में स्थित हज़रत बाबा साहब की खानकाह बनी हुई हैं l