बाबा साहब क्या है
हज़रत बाबा साहब के ज़िक्र मे कहा जाता है कि वो एक ऐसे जिंदा वली के रूप में इंसानो को इंसानियत का पैग़ाम देने और अच्छाईयों के लिए बुलाने और बुराईयों को रोकने के लिए अल्लाह ने अपने खुसुसी रहमो करम के नाते उन पर कुछ विशेष कृपा के तौर पर उनको सराहा है | जिस तरह की जानकारियाँ, संदेश लोगो से सुनने को मिलती हैं उस नज़रियें से हजरत बाबा साहब को व्यक्तियो के व्यक्तिगत बीमारी व दुनियावी मुसीबतो से छुटकारा दिलाने वाले एक फकीर के रूप मे जाने जाते है |
हज़रत बाबा साहब ने 13 साल तक फ़कीराना ज़िन्दगी के असली मक़ाम को हासिल करने क लिए जंगलो में गुमनाम ज़िन्दगी गुज़ारी और उसके बाद वहाँ से निकल कर बाबा साहब ने सन् 1980 में तमाम चीज़ो अपने माता-पिता की मोहब्बत और भाई-बहनो को अलविदा कहकर भीड़-भाड़ भरी दुनिया छोड़कर 13 बरस वनवास के बाद कपासन शरीफ के मेवाड़ के रोज़े दीवान शाह ( रेह ) की चौखट पर पहुँच गये | जब आप सन् 1993 में यहाँ पहुंचे तो आपने देखा कि यहाँ हज़ारो इंसानो की भीड़ जमा होती है | मदिने सा जलवा वहाँ की दिलकश हवा का सुरूर महसूस होता है और अल्लाह की रहमत जैसे वहाँ बरसती नज़र आती हैं और ऐसा लगता हैं कि जैसे इन बुज़ुर्गो के यहाँ अल्लाह के फरिश्ते भी तशरीफ़ लाते है और अल्लाह की बड़ाई हर तरफ जो बयात होती है, जिसमे मिलान ख्वानी, क़ुरान मज़ीद व वही महफिले समा ( कव्वाली की महफ़िल ) नज़र आती है और दीवान शाह (रेह.) के दरबार में ऐसा लगता है कि वहाँ जो भी जाता है वो दीवाना अल्लाह का हो जाता है | हज़रत बाबा साहब भी एक ऐसी बुज़ुर्ग हस्ती की चौखट पर पहुंचकर उनके आस्ताने के सदर दरवाजे के पास आपने कायम किया |
अज़ीम बुज़ुर्ग हस्ती हज़रत बाबा साहब कोई मामूली शख्सियत नहीं बल्कि एक कामिल दरवेश होकर ख़ुदा की मुकर्रब तरीन हस्तियों में से एक है, गाँव सोनगिरि का वह मकाम जहाँ बाबा साहब कयाम पज़ीर है बिला इम्तियाज़ मरकज़े खलायक है |
यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई किसी किस्म के छोटे-बड़े, आमिर-ग़रीब, मुलाज़िम, अफसरान बिना किसी तफरीख के बाबा साहब की नज़रे करम से फेज़याब हो रहे हैं | जो बाबा साहब की पाक़ीज़ा सीरत और रोशन ज़मीरी का महज़ाब है और ये जगह मुसीबतज़दा लोगों के लिये गौशाये आफियत है, जहाँ सबको सुकून मयस्सर होता है | जिस पर बाबा साहब की नज़रे इनायत हो जाती है, उसकी तमाम मुश्किले आसान होकर उसकी बदनसीबी ख़ुशनसीबी मे बदल जाती है |
सोनगिरि गाँव के इस मख़सूस मकाम पर जहाँ बाबा साहब गोशानशीन है रोज़ाना सिर्फ़ मध्यप्रदेश के नहीं वरन महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान व उत्तरप्रदेश तक के ज़ायरीन बाबा साहब के दरे-दौलत पर ज़ियारत के लिए आते हैं व अपनी अपनी मुरादे लेकर यहा हाज़िर होते हैं और खिराजे अकीदत पेश करके अपने दुखों और गमों से छुटकारा पाकर खुशहाल और बा-मुराद होते हैं |
उनकी नज़रे पड़ते ही महसूस होता है कि लेंस की शुआएं (किरण) इन्हे छू रही है और पलक झपकते ही परेशान ज़ायरीन खुश हो जाता है | बाबा साहब के रूप में एक दरवेश कयाम पज़ीर है |
महू-नासीराबाद मार्ग पर दलौदा-मंदसौर रोड स्थित सोनगिरी का ख़ानख़ाह जहाँ बाबा साहब के आशीर्वाद से जो किसी ना किसी बीमारी से या मानसिक रोग से पाड़ित है, उसको उसी वक़्त बीमारी से छुटकारा बिना भेदभाव के मिलता है | यही सच्ची मानवता है |
हज़रत बाबा साहब पठान ख़ानदान का चश्मोचिराग होकर दीनी व दुनियावी तालीम से मालामाल है| लिहाज़ा माँ-बाप, भाई-बहन सभी को छोड़कर हक़ की तलाश में जंगली बियाबान में निकल गये |
तकरीबन १२ साल इन हंगामा आराइयों से दुर जंगल में मसरुफ़े इबादत रहे | आख़िर सुकुने कल्ब मिला रूहानी शेख से जो कपासन (राज.) से रूहानी फ़ेज़ होने का शरफ हासिल है | आपके ही हुक्म की तामील में आपने राजस्थान से अपना रख्ते-सफ़र म.प्र. के लिए बांधा और कुछ वक़्त आपने जावरा, मंदसौर के दरम्यान एक कस्बा नगरी में क़याम किया |
मगर दिल ने नाशनास इलाक़े में रहना पसंद नहीं फरमाया और चंद दिनों के बाद ही शहर की आबादी से दूर, इंसानी हंगामों से परे एक छोटी सी बस्ती सोनगिरी में अपना खेमा नसाब कर लिया और यादे इलाही में दो ज़ानु हो गये, मगर फूल की खुश्बू हवा के कंधो पर चलकर चारो और फैलने लगी इस तरह लोग खुद ब खुद मुतवज्जह हो जाते हैं |
हज़रत बाबा साहब की ख़ानख़ाह पर भी आप देखेंगे की इस जंगल में भी लोगों का हुज़ूम है| सुबह, दोपहर या शाम हो या रात का पहर, लोगों की भीड़ लगी रहती है | बाबा सबकी सुनते हैं, मुस्कुराते हैं और तकलीफें दूर करते हैं | यह सब अल्लाह के हुक्म से हज़रत बाबा साहब खिद्माते खल्क कर रहे हैं |